ग्रहों का स्वरुप क्या हैं?(What are the nature of the planets?)
ग्रहों का स्वरुप क्या हैं?(What are the nature of the planets?):-सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु-केतु आदि में देवत्व गुण होता हैं। इसलिए पुराने जमाने के लोग इनको देवता के रूप में पूजन करते थे। इनको देवता का स्थान दिया गया था। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना शक्ति के बल पर ईश्वर के साक्षात दर्शन करने का भी सामर्थ्य था। फिर उन्होंने समस्त लोकों में उपरोक्त देवताओं के बारे में अपनी साधना-शक्ति के बल से ज्ञान अर्जन किया और उनके बारे में जानकारी प्राप्त की थी। उनकी उत्पत्ति, माता-पिता सहित उनके स्वरूप, विशेषता एवं स्वभाव कैसे हैं और उसके बारे में जानकारी को इकट्ठा किया और उनका मानव जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ेगा। जिससे उपरोक्त देवताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करके उनके द्वारा मानव जीवन पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों से बचने के उपाय को जान सके और उनको खुश करके उनके द्वारा मिलने वाले शुभ असर को ज्यादा से ज्यादा पाया जा सके।
इसलिए सबसे पहले उनके स्वरूप की जानकारी होना जरूरी हैं। इसलिए नवग्रहों का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से हैं। उनकी आकृति विशेषता, स्वभाव समान तुल्य गुण को भी जाना जा सकता हैं।
1.सूर्य ग्रह:-नौ ग्रहों में सबसे पहले सूर्य ग्रह को गणना करके स्थान दिया गया हैं। नौ ग्रहों में अधिपति की जगह दी गई हैं। सूर्यदेव महर्षि कश्यप एवं अदिति के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह कश्यप वंश में क्षत्रिय जाति और कलिंग देश के अधिपति बताया गया हैं।
सूर्यदेव का स्वरूप:-सूर्यदेव की देह का वर्ण हेमपुष्पिका सुमन और शोणित की तरह लाल रंग की चमक से युक्त, दोनों हाथों में मकरन्द को लिये हुए। सूर्यदेव की दो भुजाएँ बतलाई गई हैं, वे उत्पल के आसन पर बैठे हुए रहते हैं, उनके दोनों हाथों में उत्पल सौंदर्य को बढ़ा रहा हैं। उत्पल के अंदरूनी भाग के समान चमक से युक्त हैं, जो कि अपनी देह पर लाल रंग के परिधान, भिन्न-भिन्न तरह के रत्नों से जड़ित गहनों और हार को पहने हुए। ये वज्रमणि की तरह दमकते हुए, सोम और पावक की तरह चमकाने वाली आभा और पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल के तिमिर को अपनी गर्मी रूपी तेज से मिटाने वाले हैं। बहुत विशाल अग्नि या गर्मी के भण्डार से पूर्ण रुप वाले और धर्म व नीति के विरुद्ध किये जाने वाले आचरण रूपी अपराधों को दूर करने वाले हैं। सात अश्वों से जुते हुए एकचक्र वाहन पर विराजमान होकर स्वर्ण धातु की तरह आभा वाले पर्वतों के स्वामी सुमेरु पर्वत के चारों तरफ उनको नमस्कार अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं। इस तरह रोशनी से भरपूर बड़े आगार वाले भास्कर देव हैं।
सूर्यदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-भगवान् भोलेनाथ हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता अग्निदेव हैं। इस प्रकार ध्यान करके मानस पूजा और बाह्य पूजा के अनन्तर मन्त्र जप करना चाहिये।
सूर्यदेव को खुश करने का मन्त्र:-सूर्यदेव के अनेक मन्त्रों में से एक मंत्र-'ऊँ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः।' हैं।
2.चन्द्र ग्रह:-चन्द्रदेव महर्षि अत्रि एवं अनसूया के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह अत्रि वंश में ब्राह्मण जाति और यामुन देश के अधिपति बताया गया हैं। दक्ष और वीरणी की सत्ताईस नक्षत्ररुपा कन्याओं विशेषकर देवी रोहिणी के स्वामी हैं।
चन्द्रदेव का स्वरूप:-चन्द्रदेव की देह जीवनी शक्ति से पूर्ण हैं। इनकी देह का वर्ण उज्ज्वल गौर, दुग्ध, गोरस, सिंधुज और तुषार की तरह एकदम श्वेत चमक से युक्त हैं। दूध से भरे हुए पयोधि से प्रकट हुए हैं। जो भगवान शिवजी के सिर के पर मुकुट रुप में धारण किये हुए और जीवनी शक्ति के रुप में हैं। इनके दो हाथ हैं, एक हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए और दूसरे हाथ में मुद्गर लिये हुए हैं। जो कि अपनी देह पर श्वेत रंग के परिधान, भिन्न-भिन्न तरह के रत्नों से जड़ित गहनों के हार को पहने हुए और देह पर भिन्न-भिन्न तरह के सुंगधित लेप लगाये हुए हैं। सोमदेव अपनी शीतल आभा वाली अमृत से पूर्ण रश्मियों से पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल को शीतलता से सिंचन कर रहे हैं। दस श्वेत अश्वों से जुते हुए त्रिचक्र वाहन पर विराजमान होकर स्वर्ण धातु की तरह आभा वाले पर्वतों के स्वामी सुमेरु पर्वत के चारों तरफ उनको नमस्कार करते हुए अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं। इस तरह जीवनी शक्ति से भरपूर बड़े आगार वाले चन्द्र देव हैं। जीवनीय शक्ति से युक्त सुधा रस का पान कराने एवं तकलीफों को दूर करने वाले है।
चन्द्रदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-उमादेवी हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता जलदेव हैं।
चन्द्रदेव को खुश करने का मन्त्र:-चन्द्रदेव के अनेक मन्त्रों में से एक मंत्र-''ऊँ ऐं क्लीं सोमाय नमः' हैं।
3.मंगल ग्रह:-मंगल देव के पिता शिव एवं पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह भारद्वाज वंश के क्षत्रिय जाति और अवन्ति देश के अधिपति बताया गया हैं।
मंगलदेव का स्वरूप:-इनका गठन प्रज्ज्वलित पावक की लाल रंग की लपटों की चमक से युत और देह पर बहुत छोटे एवं पतले केश भी लाल रंग के हैं और इनके शरीर के प्रत्येग भाग की आभा रूपी सौंदर्य लगातार बढ़ रहा हैं। धरणीनन्दन मंगल की चार भुजाएँ हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में शक्ति, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में त्रिशूल और चौथे हाथ में गदा लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर लाल रंग के परिधान एवं लाल रंग की पुष्पमाला को पहने हुए। जो कड़कती-चमकती हुई तड़ित् की तरह असर वाले, बहुत तेज-ऊर्जावान, अपनी उष्णता रूपी क्रोध से जगत में खौफ देने वाले, आकाश से जल रूपी बौछार करने वाले और जल रूपी बौछार को छीन लेने वाले और कष्टों को दूर करने वाले और युवक दशा वाले हैं। मेष से जुते हुए वाहन पर विराजमान होकर स्वर्ण धातु की तरह आभा वाले पर्वतों के स्वामी सुमेरु पर्वत के चारों तरफ उनको नमस्कार करते हुए अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हुए।
मंगलदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-अपने अधि देवता स्कन्द हैं और प्रत्यधिदेवता पृथिवी के साथ सूर्य के सामने जा रहे हैं।
मंगलदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ हूँ श्रीं मङ्गलाय नमः।' हैं।
4.बुध ग्रह:-बुध देव के पिता चन्द्रमा एवं तारा माता के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह अत्रि वंश के ब्राह्मण जाति और मगध देश के अधिपति बताया गया हैं।
बुधदेव का स्वरूप:-इनकी देह का वर्ण जो तीक्ष्णगंधा प्रतान के बिना खिला हुआ पुष्प के तरह गहरे हरे रंग वाली हैं। बहुत अधिक खूबसूरती वाले तथा शीतल व स्निग्ध से परिपूर्ण और शतकुम्भ सुमन के समान शोभा हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में तलवार (खड्ग), दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में ढाल और चौथे हाथ में गदा लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर हरे रंग के परिधान को पहने हुए। संसार में अपनी हलचल से अशांति करने वाले, सबसे अधिक शोभा से परिपूर्ण, तरह-तरह के ज्ञान को रखने वाले और सूर्य का अत्यंत लगाव होता हैं। नित्य सिंह वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हुए।
बुधदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-अपने प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता नारायण हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता विष्णु के साथ सूर्यदेव के सम्मुख जा रहे हैं।
बुधदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ऐं क्लीं श्रीं श्रीं बुधाय नमः।' हैं।
5.गुरु ग्रह:-गुरु देव महर्षि अंगिरा एवं सुरुपा (सुनीमा) के गर्भ से जन्म हुआ। इनकी तीन पत्नियाँ बड़ी पत्नी शुभा, छोटी तारा या तारका एवं सबसे छोटी पत्नी का नाम ममता हैं। इस तरह अंगिरा वंश के ब्राह्मण जाति और सिन्धु देश के अधिपति बताया गया हैं।
गुरुदेव का स्वरूप:-इनकी देह का वर्ण पीला एवं स्वर्ण धातु की तरह चमक वाला हैं, बड़े-बड़े चक्षुओं से युक्त हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में रुद्राक्ष की माला, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में कमण्डलु या शीला और चौथे हाथ में दण्ड लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर पीले रंग के परिधान को पहने हुए और कमल पर बैठे हुए हैं। हमेशा तीनों लोक में निवास करने वालों का हित में लगे रहने वाले, सभी तरह के विषयों की जानकारी से परिपूर्ण, बहुत सारे अनुगामी से युक्त, पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक एवं पाताल लोक के स्वामी हैं और देवताओं के मन्त्री व गुरु एवं ऋषियों के गुरु बृहस्पति हैं। नित्य पीले रंग के हवा की गति से चलने वाले आठ अश्वों द्वारा खींचा गया स्वर्ण से बना हुआ प्रभायुक्त वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।
बृहस्पतिदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-बृहस्पतिदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता ब्रह्मा हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता इन्द्र हैं।
बृहस्पतिदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं क्लीं हूँ बृहस्पतये नमः।' हैं।
6.शुक्र ग्रह:-शुक्र देव महर्षि भृगु एवं दिव्या (ख्याति देवी) के गर्भ से जन्म हुआ। इनकी लक्ष्मी छोटी बहिन हैं। इस तरह भृगु वंश के ब्राह्मण जाति और भोजकट देश के अधिपति बताया गया हैं।
शुक्रदेव का स्वरूप:-इनकी देह का वर्ण तुषार, बरफ, मुक्ता पुष्प और उत्पल की डंडी के पतले रेशा की तरह श्वेत कांति वाले हैं और उत्पल पर बैठे हुए हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में रुद्राक्ष की माला, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में कमण्डलु या शीला और चौथे हाथ में दण्ड लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर श्वेत रंग के परिधान को पहने हुए। वे श्वेत रंग के सिंहासन पर आसीन होते हैं। सभी शास्त्रों की जानकारी रखते हुए अच्छी बातों की शिक्षा या ज्ञान देने वाले, दैत्यों को मुख्य रूप आदेश और राह देने वाले मन्त्री एवं मुख्य रुप से उनके गुरु और उनके जीवन की रक्षा करके उनको नया जीवन देने वाले, रात को आकाश में चमकने वाले नक्षत्रों के ग्रहों के अधिपति और सबसे ज्यादा सोचने-समझने एवं निश्चय करने में परिपूर्ण होते हैं। नित्य मगरमच्छ या सात अश्वों द्वारा खींचा गया वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।
शुक्रदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-इन्द्रदेव हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता चन्द्रमा हैं।
शुक्रदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः।' हैं।
7.शनि ग्रह:-शनिदेव महर्षि सूर्यदेव एवं छाया के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह कश्यप वंश के शुद्र जाति और सौराष्ट्र देश के अधिपति बताया गया हैं। यमराज के बड़े भाई हैं।
शनिदेव का स्वरूप:-काले रंग की विशाल देह वाले, बड़ी-बड़ी आँखों वाले हैं। इनकी देह देवराज के धारण नीले रंग बहुमूल्य रत्न, गहरे आसमानी रंग या नीले सुरमा की चमक वाले और बहुत ही धीरे-धीरे अपनी गति से चलने वाले हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में बाण, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में शूल या त्रिशूल और चौथे हाथ में धनुष लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर काले रंग के परिधान को पहने हुए। वे काले रंग के सिंहासन पर आसीन होते हैं। भगवान् शिव के अत्यंत प्यारे और आत्मा एवं ब्रह्म के विषय में चिंतन-मनन के मुक्ति प्राप्त हुई हैं। नित्य गृध्र वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।
शनिदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-यमराज हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता प्रजापति हैं।
शनिदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः।' हैं।
8.राहु ग्रह:-राहुदेव महर्षि वप्रिचिति एवं होलिका (सिंहिका) के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह पैठीनस वंश के शुद्र जाति और मलय देश के अधिपति बताया गया हैं।
राहुदेव का स्वरूप:-अलग-अलग रुप और वर्ण वाले, मुख बहुत डरावना, सैकड़ों तथा हजारों नेत्रों वाले और आधी देह वाले हैं।इनकी देह का वर्ण काला है। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में खड्ग या तलवार, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में शूल या त्रिशूल और चौथे हाथ में ढाल लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर काले रंग के परिधान को पहने हुए। वे नील रंग के सिंहासन पर आसीन होते हैं। महान् पराक्रम से सम्पन्न हैं, भयानक-डरावनी गर्जना के मिजाज वाले, भयभीत करने वाले, संसार में अपने उपद्रवों से कष्ट पहुँचाने वाले एवं अंधकार करने वाले और सूर्य तथा चन्द्र को ग्रसने वाले तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं, नभमंडल में टिमटिमाते नक्षत्रों के ग्रहों में मुख्य हैं। नित्य सिंह वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।
राहुदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-राहुदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता काल हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति सम या समान या प्रत्यधिदेवता सर्प हैं।
राहुदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ऐं ह्रीं राहवे नमः।' हैं।
9.केतु ग्रह:-केतुदेव महर्षि वप्रिचिति एवं होलिका के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह जैमिनी वंश के शुद्र जाति और कुशद्वीप देश के अधिपति बताया गया हैं।
केतुदेव का स्वरूप:-इनका मुख बिगड़ा हुआ बेडौल हैं। बहुत बड़े मुख वाले, विशाल रक्तवाहिनी नलिका वाले, बड़े दांतों के बिना देह वाले और ऊपर की ओर केश वाले शिखा हैं। इनकी देह का वर्ण लाली लिए काला, पूतदारु फूल के तरह सफेद-पीले और नारंगी-लाल की चमक से युक्त हैं। इनके दो हाथ हैं, दो हाथों के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए और दूसरे हाथ में मुद्गर लिये हुए हैं। जो कि अपनी देह पर लाली लिए काला रंग के परिधान को पहने हुए। केतुदेव भयानक-डरावनी गर्जना के मिजाज वाले, भयभीत करने वाले और रुद्र के पुत्र हैं, बहुत पराक्रमी, नभमंडल में टिमटिमाते नक्षत्रों के ग्रहों में मुख्य हैं। नित्य गीध वाहन पर अच्छी तरह विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।
केतुदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:- चित्रगुप्त हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं।
केतुदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं ऐं केतवे नमः।' हैं।