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Monday, 11 September 2023

September 11, 2023

ग्रहों का स्वरुप क्या हैं?(What are the nature of the planets?)

ग्रहों का स्वरुप क्या हैं?(What are the nature of the planets?):-सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु-केतु आदि में देवत्व गुण होता हैं। इसलिए पुराने जमाने के लोग इनको देवता के रूप में पूजन करते थे। इनको देवता का स्थान दिया गया था। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना शक्ति के बल पर ईश्वर के साक्षात दर्शन करने का भी सामर्थ्य था। फिर उन्होंने समस्त लोकों में उपरोक्त देवताओं के बारे में अपनी साधना-शक्ति के बल से ज्ञान अर्जन किया और उनके बारे में जानकारी प्राप्त की थी। उनकी उत्पत्ति, माता-पिता सहित उनके स्वरूप, विशेषता एवं स्वभाव कैसे हैं और उसके बारे में जानकारी को इकट्ठा किया और उनका मानव जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ेगा। जिससे उपरोक्त देवताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करके उनके द्वारा मानव जीवन पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों से बचने के उपाय को जान सके और उनको खुश करके उनके द्वारा मिलने वाले शुभ असर को ज्यादा से ज्यादा पाया जा सके।



What are the nature of the planets?


इसलिए सबसे पहले उनके स्वरूप की जानकारी होना जरूरी हैं। इसलिए नवग्रहों का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से हैं। उनकी आकृति विशेषता, स्वभाव समान तुल्य गुण को भी जाना जा सकता हैं।



1.सूर्य ग्रह:-नौ ग्रहों में सबसे पहले सूर्य ग्रह को गणना करके स्थान दिया गया हैं। नौ ग्रहों में अधिपति की जगह दी गई हैं। सूर्यदेव महर्षि कश्यप एवं अदिति के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह कश्यप वंश में क्षत्रिय जाति और कलिंग देश के अधिपति बताया गया हैं।



 

सूर्यदेव का स्वरूप:-सूर्यदेव की देह का वर्ण हेमपुष्पिका सुमन और शोणित की तरह लाल रंग की चमक से युक्त, दोनों हाथों में मकरन्द को लिये हुए। सूर्यदेव की दो भुजाएँ बतलाई गई हैं, वे उत्पल के आसन पर बैठे हुए रहते हैं, उनके दोनों हाथों में उत्पल सौंदर्य को बढ़ा रहा हैं। उत्पल के अंदरूनी भाग के समान चमक से युक्त हैं, जो कि अपनी देह पर लाल रंग के परिधान, भिन्न-भिन्न तरह के रत्नों से जड़ित गहनों और हार को पहने हुए। ये वज्रमणि की तरह दमकते हुए, सोम और पावक की तरह चमकाने वाली आभा और पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल के तिमिर को अपनी गर्मी रूपी तेज से मिटाने वाले हैं। बहुत विशाल अग्नि या गर्मी के भण्डार से पूर्ण रुप वाले और धर्म व नीति के विरुद्ध किये जाने वाले आचरण रूपी अपराधों को दूर करने वाले हैं। सात अश्वों से जुते हुए एकचक्र वाहन पर विराजमान होकर स्वर्ण धातु की तरह आभा वाले पर्वतों के स्वामी सुमेरु पर्वत के चारों तरफ उनको नमस्कार अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं। इस तरह रोशनी से भरपूर बड़े आगार वाले भास्कर देव हैं। 



सूर्यदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-भगवान् भोलेनाथ हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता अग्निदेव हैं। इस प्रकार ध्यान करके मानस पूजा और बाह्य पूजा के अनन्तर मन्त्र जप करना चाहिये।



सूर्यदेव को खुश करने का मन्त्र:-सूर्यदेव के अनेक मन्त्रों में से एक मंत्र-'ऊँ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः।' हैं।



2.चन्द्र ग्रह:-चन्द्रदेव महर्षि अत्रि एवं अनसूया के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह अत्रि वंश में ब्राह्मण जाति और यामुन देश के अधिपति बताया गया हैं। दक्ष और वीरणी की सत्ताईस नक्षत्ररुपा कन्याओं विशेषकर देवी रोहिणी के स्वामी हैं।



चन्द्रदेव का स्वरूप:-चन्द्रदेव की देह जीवनी शक्ति से पूर्ण हैं। इनकी देह का वर्ण उज्ज्वल गौर, दुग्ध, गोरस, सिंधुज और तुषार की तरह एकदम श्वेत चमक से युक्त हैं। दूध से भरे हुए पयोधि से प्रकट हुए हैं। जो भगवान शिवजी के सिर के पर मुकुट रुप में धारण किये हुए और जीवनी शक्ति के रुप में हैं। इनके दो हाथ हैं, एक हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए और दूसरे हाथ में मुद्गर लिये हुए हैं। जो कि अपनी देह पर श्वेत रंग के परिधान, भिन्न-भिन्न तरह के रत्नों से जड़ित गहनों के हार को पहने हुए और देह पर भिन्न-भिन्न तरह के सुंगधित लेप लगाये हुए हैं। सोमदेव अपनी शीतल आभा वाली अमृत से पूर्ण रश्मियों से पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल को शीतलता से सिंचन कर रहे हैं। दस श्वेत अश्वों से जुते हुए त्रिचक्र वाहन पर विराजमान होकर स्वर्ण धातु की तरह आभा वाले पर्वतों के स्वामी सुमेरु पर्वत के चारों तरफ उनको नमस्कार करते हुए अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं। इस तरह जीवनी शक्ति से भरपूर बड़े आगार वाले चन्द्र देव हैं। जीवनीय शक्ति से युक्त सुधा रस का पान कराने एवं तकलीफों को दूर करने वाले है।



चन्द्रदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-उमादेवी हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता जलदेव हैं।



चन्द्रदेव को खुश करने का मन्त्र:-चन्द्रदेव के अनेक मन्त्रों में से एक मंत्र-''ऊँ ऐं क्लीं सोमाय नमः' हैं।




3.मंगल ग्रह:-मंगल देव के पिता शिव एवं पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह भारद्वाज वंश के क्षत्रिय जाति और अवन्ति देश के अधिपति बताया गया हैं।


मंगलदेव का स्वरूप:-इनका गठन प्रज्ज्वलित पावक की लाल रंग की लपटों की चमक से युत और देह पर बहुत छोटे एवं पतले केश भी लाल रंग के हैं और इनके शरीर के प्रत्येग भाग की आभा रूपी सौंदर्य लगातार बढ़ रहा हैं। धरणीनन्दन मंगल की चार भुजाएँ हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में शक्ति, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में त्रिशूल और चौथे हाथ में गदा लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर लाल रंग के परिधान एवं लाल रंग की पुष्पमाला को पहने हुए। जो कड़कती-चमकती हुई तड़ित् की तरह असर वाले, बहुत तेज-ऊर्जावान, अपनी उष्णता रूपी क्रोध से जगत में खौफ देने वाले, आकाश से जल रूपी बौछार करने वाले और जल रूपी बौछार को छीन लेने वाले और कष्टों को दूर करने वाले और युवक दशा वाले हैं। मेष से जुते हुए वाहन पर विराजमान होकर स्वर्ण धातु की तरह आभा वाले पर्वतों के स्वामी सुमेरु पर्वत के चारों तरफ उनको नमस्कार करते हुए अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हुए।



मंगलदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-अपने अधि देवता स्कन्द हैं और प्रत्यधिदेवता पृथिवी के साथ सूर्य के सामने जा रहे हैं।



मंगलदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ हूँ श्रीं मङ्गलाय नमः।' हैं।



4.बुध ग्रह:-बुध देव के पिता चन्द्रमा एवं तारा माता के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह अत्रि वंश के ब्राह्मण जाति और मगध देश के अधिपति बताया गया हैं। 



बुधदेव का स्वरूप:-इनकी देह का वर्ण जो तीक्ष्णगंधा प्रतान के बिना खिला हुआ पुष्प के तरह गहरे हरे रंग वाली हैं। बहुत अधिक खूबसूरती वाले तथा शीतल व स्निग्ध से परिपूर्ण और शतकुम्भ सुमन के समान शोभा हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में तलवार (खड्ग), दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में ढाल और चौथे हाथ में गदा लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर हरे रंग के परिधान को पहने हुए। संसार में अपनी हलचल से अशांति करने वाले, सबसे अधिक शोभा से परिपूर्ण, तरह-तरह के ज्ञान को रखने वाले और सूर्य का अत्यंत लगाव होता हैं। नित्य सिंह वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हुए।



बुधदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-अपने प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता नारायण हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता विष्णु के साथ सूर्यदेव के सम्मुख जा रहे हैं।



बुधदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ऐं क्लीं श्रीं श्रीं बुधाय नमः।' हैं।



5.गुरु ग्रह:-गुरु देव महर्षि अंगिरा एवं सुरुपा (सुनीमा) के गर्भ से जन्म हुआ। इनकी तीन पत्नियाँ बड़ी पत्नी शुभा, छोटी तारा या तारका एवं सबसे छोटी पत्नी का नाम ममता हैं। इस तरह अंगिरा वंश के ब्राह्मण जाति और सिन्धु देश के अधिपति बताया गया हैं।



गुरुदेव का स्वरूप:-इनकी देह का वर्ण पीला एवं स्वर्ण धातु की तरह चमक वाला हैं, बड़े-बड़े चक्षुओं से युक्त हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में रुद्राक्ष की माला, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में कमण्डलु या शीला और चौथे हाथ में दण्ड लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर पीले रंग के परिधान को पहने हुए और कमल पर बैठे हुए हैं। हमेशा तीनों लोक में निवास करने वालों का हित में लगे रहने वाले, सभी तरह के विषयों की जानकारी से परिपूर्ण, बहुत सारे अनुगामी से युक्त, पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक एवं पाताल लोक के स्वामी हैं और देवताओं के मन्त्री व गुरु एवं ऋषियों के गुरु बृहस्पति हैं। नित्य पीले रंग के हवा की गति से चलने वाले आठ अश्वों द्वारा खींचा गया स्वर्ण से बना हुआ प्रभायुक्त वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं। 



बृहस्पतिदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-बृहस्पतिदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता ब्रह्मा हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता इन्द्र हैं।



बृहस्पतिदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं क्लीं हूँ बृहस्पतये नमः।' हैं।




6.शुक्र ग्रह:-शुक्र देव महर्षि भृगु एवं दिव्या (ख्याति देवी) के गर्भ से जन्म हुआ। इनकी लक्ष्मी छोटी बहिन हैं। इस तरह भृगु वंश के ब्राह्मण जाति और भोजकट देश के अधिपति बताया गया हैं। 



शुक्रदेव का स्वरूप:-इनकी देह का वर्ण तुषार, बरफ, मुक्ता पुष्प और उत्पल की डंडी के पतले रेशा की तरह श्वेत कांति वाले हैं और उत्पल पर बैठे हुए हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में रुद्राक्ष की माला, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में कमण्डलु या शीला और चौथे हाथ में दण्ड लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर श्वेत रंग के परिधान को पहने हुए। वे श्वेत रंग के सिंहासन पर आसीन होते हैं। सभी शास्त्रों की जानकारी रखते हुए अच्छी बातों की शिक्षा या ज्ञान देने वाले, दैत्यों को मुख्य रूप आदेश और राह देने वाले मन्त्री एवं मुख्य रुप से उनके गुरु और उनके जीवन की रक्षा करके उनको नया जीवन देने वाले, रात को आकाश में चमकने वाले नक्षत्रों के ग्रहों के अधिपति और सबसे ज्यादा सोचने-समझने एवं निश्चय करने में परिपूर्ण होते हैं। नित्य मगरमच्छ या सात अश्वों द्वारा खींचा गया वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।



शुक्रदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-इन्द्रदेव हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता चन्द्रमा हैं।



शुक्रदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः।' हैं।



7.शनि ग्रह:-शनिदेव महर्षि सूर्यदेव एवं छाया के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह कश्यप वंश के शुद्र जाति और सौराष्ट्र देश के अधिपति बताया गया हैं। यमराज के बड़े भाई हैं। 

 

शनिदेव का स्वरूप:-काले रंग की विशाल देह वाले, बड़ी-बड़ी आँखों वाले हैं। इनकी देह देवराज के धारण नीले रंग बहुमूल्य रत्न, गहरे आसमानी रंग या नीले सुरमा की चमक वाले और बहुत ही धीरे-धीरे अपनी गति से चलने वाले हैं। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में बाण, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में शूल या त्रिशूल और चौथे हाथ में धनुष लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर काले रंग के परिधान को पहने हुए। वे काले रंग के सिंहासन पर आसीन होते हैं। भगवान् शिव के अत्यंत प्यारे और आत्मा एवं ब्रह्म के विषय में चिंतन-मनन के मुक्ति प्राप्त हुई हैं। नित्य गृध्र वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं। 




शनिदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-यमराज हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता प्रजापति हैं।



शनिदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः।' हैं।



8.राहु ग्रह:-राहुदेव महर्षि वप्रिचिति एवं होलिका (सिंहिका) के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह पैठीनस वंश के शुद्र जाति और मलय देश के अधिपति बताया गया हैं।



राहुदेव का स्वरूप:-अलग-अलग रुप और वर्ण वाले, मुख बहुत डरावना, सैकड़ों तथा हजारों नेत्रों वाले और आधी देह वाले हैं।इनकी देह का वर्ण काला है। इनके चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में खड्ग या तलवार, दूसरे हाथ के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए, तीसरे हाथ में शूल या त्रिशूल और चौथे हाथ में ढाल लिये हुए छवि वाले हैं। जो कि अपनी देह पर काले रंग के परिधान को पहने हुए। वे नील रंग के सिंहासन पर आसीन होते हैं। महान् पराक्रम से सम्पन्न हैं, भयानक-डरावनी गर्जना के मिजाज वाले, भयभीत करने वाले, संसार में अपने उपद्रवों से कष्ट पहुँचाने वाले एवं अंधकार करने वाले और सूर्य तथा चन्द्र को ग्रसने वाले तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं, नभमंडल में टिमटिमाते नक्षत्रों के ग्रहों में मुख्य हैं। नित्य सिंह वाहन पर विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।



राहुदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:-राहुदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता काल हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति सम या समान या प्रत्यधिदेवता सर्प हैं।


राहुदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ऐं ह्रीं राहवे नमः।' हैं।



9.केतु ग्रह:-केतुदेव महर्षि वप्रिचिति एवं होलिका के गर्भ से जन्म हुआ। इस तरह जैमिनी वंश के शुद्र जाति और कुशद्वीप देश के अधिपति बताया गया हैं। 



केतुदेव का स्वरूप:-इनका मुख बिगड़ा हुआ बेडौल हैं। बहुत बड़े मुख वाले, विशाल रक्तवाहिनी नलिका वाले, बड़े दांतों के बिना देह वाले और ऊपर की ओर केश वाले शिखा हैं। इनकी देह का वर्ण लाली लिए काला, पूतदारु फूल के तरह सफेद-पीले और नारंगी-लाल की चमक से युक्त हैं। इनके दो हाथ हैं, दो हाथों के द्वारा मनचाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए आशीष के रुप में ऊपर उठे हुए और दूसरे हाथ में मुद्गर लिये हुए हैं। जो कि अपनी देह पर लाली लिए काला रंग के परिधान को पहने हुए। केतुदेव भयानक-डरावनी गर्जना के मिजाज वाले, भयभीत करने वाले और रुद्र के पुत्र हैं, बहुत पराक्रमी, नभमंडल में टिमटिमाते नक्षत्रों के ग्रहों में मुख्य हैं। नित्य गीध वाहन पर अच्छी तरह विराजमान होकर अपनी गति से घूमते हुए अपना चक्कर पूर्ण करते हैं।




केतुदेव के प्रधान या मुख्य इष्टदेवता या अधिदेवता:- चित्रगुप्त हैं और प्रधान इष्टदेवता की अनुकृति समान या प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं।



केतुदेव को खुश करने का मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं ऐं केतवे नमः।' हैं।









                      



 
























Thursday, 3 August 2023

August 03, 2023

घर के गार्डन के लिए वास्तु टिप्स का महत्त्व (Importance of Vastu Tips for Home Garden)

घर के गार्डन के लिए वास्तु टिप्स महत्त्व(Importance of Vastu Tips for Home Garden):-मनुष्य के जीवन को सभी तरह के सुख-आराम को प्रदान करने वाला उसका निवास स्थान होता हैं, जिसमें वह अपने पूरे दिन की थकावट से राहत पाता हैं। निवास स्थान की अंदरूनी साज-सज्जा एवं रंग-रोगन के अलावा पेड़-पौधों एवं गृहवाटिका का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। गृहवाटिका (गार्डन) लगाने से उसमें लगे हुए विभिन्न पेड़-पौधों से आवास स्थान की खूबसूरती में बढ़ोतरी, मन की सभी तरह परेशानियों से मुक्ति एवं आनंद की प्राप्ति, थकावट से राहत, उत्साह में बढ़ोतरी, कुदरती खूबसूरती, वातावरण की स्वच्छता और वास्तुदोषों के नाश आदि के फल मिलते हैं। मनुष्य की आंखों को हरियाली से भरे हुए पेड़-पौधे राहत एवं तन्दुरुस्ती के हिसाब से भी बहुत फायदेमंद प्रदान करते हैं। जिस तरह बहुत सारे भलाई कार्य करने, बहुत अधिक लोकहित सोच से हवन-पूजन करवाने अथवा तड़ाग खुदवाने या फिर देवताओं की पूजा-अर्चना से प्राप्त नहीं होते हैं, वह भलाई केवल एक पौधे को लगाने से सरलता से मिल जाती हैं। इस तरह एक वृक्ष लगाकर जीवधारी प्राणियों को नया जीवन मिलता हैं। वास्तुशास्त्र में भी वृक्षों का मनुष्य से गहरे संबंध के बारे में व्याख्या की गई हैं। जब भी अपने निवास स्थान की जगह पर पेड़-पौधों को लगाते समय वास्तु का भी ख्याल रखना चाहिए अन्यथा ये प्रदूषण दूर करने की अपेक्षा वास्तुदोष भी उत्पन्न करते हैं। 



Importance of Vastu Tips for Home Garden





गृह वाटिका या बगीचा में पौधरोपण के नक्षत्र (Constellations for planting saplings in the home garden or garden):-जब भी गृहवाटिका में पेड़-पौधों को लगाने का ख्याल आने पर  नक्षत्रों का विचार अवश्य करना चाहिए जैसे- उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल आदि नक्षत्र पेड़-पौधों को लगाने में अच्छे होते हैं। इन नक्षत्रों के समय में लगाएं गए पेड़-पौधे जल्दी बढ़ोतरी करते हैं। 



घर में बगीचा या गार्डन कहां होना चाहिए और कौन दिशा सबसे अच्छी रहती हैं? (Where should be the garden or garden in the house and which direction is best?):-आवास में से गार्डन के लिए स्थान को निकालते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।



१.आवास स्थान के बायीं ओर की जगह में ही बगीचा लगाना चाहिए।



२.जो मनुष्य अपने निवास की जगह से पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशा में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त फुलबगिया बनाता है, वह मनुष्य हमेशा गायत्री से युक्त, धर्म एवं श्रद्धा से दोनों हाथों से देने वाला और लोकहित के विचार से हवन-पूजन युक्त शुभ काम को करने वाला होता हैं।



3.लेकिन जो मनुष्य अपने निवास की जगह से आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य या वायव्य में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त गार्डन बनाता है, वह मनुष्य हमेशा रुपये-पैसे की तंगी एवं नुकसान भोगने वाले, सन्तान के रूप में पुत्र उसके मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले तथा परलोक में निंदनीय लोकचर्चा प्राप्त होती है। वह मृत्यु को प्राप्त होता है। वह वंश-परम्परा आदि समाज में खराब चाल-चलन वाला और ओछा-दूसरे की बुराई करने वाला होता हैं। इसलिए निवास स्थान के नैऋत्यकोण अथवा अग्निकोण में गृहवाटिका नहीं लगानी चाहिए।




गार्डन में दिशा-विशेष में स्थित होने पर शुभ अथवा अशुभ फल:-कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशा-विशेष में लगे होने पर शुभ अथवा अशुभ फल देने वाले हो जाते हैं, जैसे-



फसलों के लिए दिशाओं हेतु चुनाव:-जब भी कोई किसान या गृहवाटिका में अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको निम्नलिखित दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं।


 

1.नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब बहुत वजन वाले बड़े फल या दाने वाली, गूढ़ बलदायक गुण वाले फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको नैर्ऋत्य कोण में लगाना चाहिए।



2.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब लम्बे कद, लम्बाकार दानों या फलों, कम शाखाओं के फैलाव वाले, वायवीय गुणों वाले अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको वायव्य कोण में लगाना चाहिए।



3.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब गर्म, चरपरे, कम जल वाले, कड़वे, कटु भूख को बढ़ाने वाले मिर्च, अदरक आदि फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको आग्नेय कोण में लगाना चाहिए।



4.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब जलीय गुणों वाले (जल के अंश से युक्त रसवाले स्वादिष्ट) रसदार फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको ईशान कोण में लगाना चाहिए।


 


गार्डन के लिए फल-फूल वाले पेड़-वृक्षों की दिशा का चुनाव:-शास्त्रों में पेड़-पौधों या वृक्षों को सही दिशा में लगाने को बहुत जरूरी बताया हैं, जिससे सही दिशा में लगे पेड़-पौधों का फायदा मिल सके। इसलिए निम्नलिखित तरह के अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को या वृक्षों को जब भी कोई किसान या गार्डन में लगाने वाला हो, तो उनकी आकृति को ध्यान रखते हुए सही दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं। 



1.पूर्व दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पूर्व दिशा में पीपल का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को हर समय खौफ सतता रहता हैं और समाज में निम्न आर्थिक जीवन स्तर से जीवन को जीने वाले होते हैं। लेकिन पूर्व दिशा में बरगद का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



2.पश्चिम दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पश्चिम दिशा में वट का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को राजकीय शासित सत्ता से संकट एवं तकलीफे औरत और खानदान की बरबादी होती हैं और आम, कैथ, अगस्त्य तथा निर्गुण्डी रुपये-पैसों एवं जमीन-जायदाद की बरबादी करवाते हैं। लेकिन पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




3.उत्तर दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की उत्तर दिशा में गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को मन की कल्पना से उत्पन्न विचारों से कष्ट व झंझट और ऑंखों में होने वाले रोग से कष्ट होता हैं। लेकिन उत्तर दिशा में कैथ और पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




4.दक्षिण दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की दक्षिण दिशा में पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को व्याधि और सभी तरह से नाकामयाबी मिलती हैं। लेकिन उत्तर दिशा में गूलर और गुलाब का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



5.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब मनुष्य के निवास स्थान की आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में वट, पीपल, सेमल, पाकर तथा गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को कष्ट और मरण के समान कष्ट होता हैं। लेकिन आग्नेय कोण में अनार का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



6.नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में जामुन, कदम्ब और इमली वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



7.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में बेल (बिल्व) वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



8.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में आँवला, कटहल एवं आम वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



घर में बगीचा या गार्डन लगाते समय विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:- 



1.यदि निवास स्थान की जगह के पास में कोई अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष लगे हो और उन पेड़-वृक्ष को वहां से काटने में बाधा आ रही हो, तो उन अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष और निवास स्थान की जगह के बीच में हितकारी या मंगलकारी पेड़-वृक्ष को लगा देना चाहिए।




2.यदि मनुष्य के आवास के नजदीक पीपल का वृक्ष लगा हो, तो उस पीपल के वृक्ष की नियमित रूप से विनय, श्रद्धा और समपर्ण की सोच से जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढाकर पूजा एवं देखभाल करते रहना चाहिए।



3.यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदि की अनुकरण रूपी प्रतिकृति दिन के दूसरे और तीसरे पहर (सूर्योदय से लेकर तीन-तीन घण्टे का एक पहर) में निवास स्थान पर पड़ती हैं, तो उस निवास स्थान के सदस्य हमेशा तकलीफ और व्याधि से पीड़ित रहते हैं।




4.अक्सर नगरों में जमीन का भाग कम होता हैं, अतः आवास स्थान में वट, पीपल, गूलर, आम, नारियल आदि बड़े वृक्षों का लगाना अच्छा नहीं होता है। यह वृक्ष आकार में बहुत बड़े और फैलने वाले होते हैं एवं इसी कारण इनकी जड़ें भी जमीन के बहुत गहराई तक जाती हैं।



5.जमीन के छोटे भाग पर जब इन बड़े आकार एवं गहराई तक फैलने वाले वृक्ष को लगाया जाता हैं, तो इनके जड़ें गहराई में जाने पर आवास की दीवारों में दरज उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे आवास को नुकसान की संभावना हो सकती हैं। इस तरह उपरोक्त सभी तरह बड़े आकार वाले वृक्ष अमंगलकारी होते हैं, लेकिन भूमि का टुकड़ा ज्यादा होने पर या जोतने-बोने की जमीन वाले कृषिक्षेत्र आदि में इन्हें लगाया जा सकता हैं।



6.बहुत सारे मनुष्य अपने आवास में किचन गार्डन लगाने लग गए हैं, इस तरह आवास में किचन गार्डन लगाने में किसी विशेष वास्तु सहमति के कायदे नहीं हैं।



7.निवास स्थान की छत पर भी यदि पौधे लगाए जा रहे हैं, तो कोई विशेष नियम नहीं है। बस यह ध्यान रखना चाहिए कि काँटेदार पौधे नहीं हों।



8.जब आवास स्थान में कैक्टस जैसे रेतीली भूमि में उगने वाले रेगिस्तानी पौधे उगाये जाते हैं, तब उस आवास के सदस्यों में बेचैनी, दुश्मनों के द्वारा परेशानी और रुपये-पैसों का नुकसान होता रहता हैं।



9.लॉन या दूब लगाना:-जब निवास स्थान की जगह में खुला घासयुक्त मैदान वाला लॉन या दूब को लगाना हो, तो आवास के पूर्वी अथवा उत्तरी दिशा में हितकारी रहता हैं।



10.यदि आवास के पूर्व दिशा में बड़े एवं फैलाव वाले वृक्षों का न होना या कम होना हितकारी होता हैं। यदि उन वृक्षों को नहीं काट पाने की स्थिति में आवास के उत्तर दिशा की ओर उनके बुरे प्रभावों को ठीक तरह करने के लिए आंवला, अमलतास, हरश्रृंगार, तुलसी, वन तुलसी आदि पौधों में से कोई भी एक पौधों को लगाया जा सकता है।



11.जब वृक्षों में किसी भी कारण से कम फल लगे या नहीं लगते हो, तब उड़द, मूंग, यव, तिल और कुलथी को एक साथ मिलाकर उनको पानी में डालकर उस पानी से उन वृक्षों को जल देना चाहिए।



12.शयनागार में:-मनुष्य अपने दिन भर की थकावट से अपने शरीर को राहत देने के लिए अपने निवास स्थान में  सोने के कक्ष का सहारा लेता है, जिससे उसके शरीर में पूरे दिन की नष्ट हुई ऊर्जा सोकर मिल सके। उस जगह पर भी पौधे लगाने की राह नहीं दे सकते हैं, क्योंकि रात्रिकाल में पेड़-पौधे या वृक्ष अपनी क्रियाविधि को चलाने के लिए कार्बनडाई ऑक्साइड को छोड़ते हैं और स्वयं ऑक्सीजन को उपयोग करते हैं, जिससे शयनागार के पास रहने से मनुष्य को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पाती हैं और कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करना पड़ता हैं जिससे मनुष्य की तन्दुरुस्ती बिगड़ने लगती है और कई रोगों का घर मनुष्य शरीर बन जाता हैं।



13.पुष्प वाले पौधे:-आवास में पुष्प वाले पौधे, मनीप्लान्ट अथवा तड़क-भड़कदार वाले शोभाकारी सजावटी, दीवार, पेड़ आदि पर फैलने वाले बिना तने की लता या बेलों को लगाना भी फलदायक होता है। मनी प्लान्ट अर्थात् रुपयों-पैसों को अपनी तरफ खींचकर धनवान वाला पौधा को हमेशा ईशान कोण या उत्तर दिशा में ही लगाना चाहिए।



14.कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष:-वास्तु के अनुसार कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष आवास के गार्डन में नहीं लगाने चाहिए।



आसन्नाः कन्टकिनो रिपू भयदाः क्षीरिणोSर्थनाशाय।


फलिनः प्रजाक्षय करा दारूण्यपि वर्जये देषाम्।। 


(बृहत्संहिता 53/86)


अर्थात्:-


काँटें वाले वृक्ष:-आवास के नजदीक टहनियों में सुई के आकार कंटक वाले वृक्ष जैसे-बेर, बबूल, गुलाब, कैक्टस को लगाने से आवास के लोगों हर समय दुश्मनों के द्वारा नुकसान पहुँचाने का डर सताता रहता हैं।




15.सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले वृक्ष या पेड़:-पत्तियों या डंठलों में स्थित सफेद तरल वाले पेड़ या वृक्ष को भी अपने आशियाना में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इन पेड़ या वृक्ष की टहनियों या डंठलों या पत्तियों से निकलने वाला सफेद तरल पदार्थ बहुत ही विष से युक्त होता हैं और नेत्रों के लिए हानिकारक होते हुए जलन सहित पीड़ा देने वाला होता हैं। जो वृक्ष ज्यादा सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले हो, उनको लगाने से आवास वाले लोगों को रुपये-पैसों का नुकसान करवाते हैं, जिससे हर समय आर्थिक तंगी के हालात बने रहते हैं।




16.फलदार वृक्षों:-फलदार वृक्षों को अपने निवास स्थान में खुली रखी हुई जगह जिसका उपयोग अपने निवास स्थान के कामों में किया जाता हैं, उस जगह पर फलदार वृक्षों को लगाना अनिष्टकारी शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं। क्योंकि इस स्थान में लगे हुए फलदार वृक्षों के फल को तोड़ने के लिए बच्चे वृक्ष पर चढ़कर गिरने का डर रहता हैं जिससे उनको चोट लग सकती हैं और फल तोड़ने के चक्कर में शिला का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे निवास स्थान के दरवाजों या खिड़की आदि की जगहों पर लगे दर्पण या आईना को शिला मारकर तोड़ सकते हैं। जो वृक्ष फल वाले हो, उनको लगाने से आवास के लोगों को सन्तान और स्त्री सुख का नुकसान होता हैं। इन फल वाले वृक्षों की काष्ठ को आवास में नहीं लगाना चाहिए। यदि उपरोक्त वृक्षों को काटना संभव नहीं हो, तो इन वृक्षों और आवास के बीच में हितकारी वृक्ष को लगा देना चाहिए।



17.बेल बिना तना वाली लताएं:-जो जमीन, दीवार, पेड़ आदि पर फैलकर बिना तने की लताओं को अपने निवास स्थान के नजदीक नहीं लगाने की राय दी जाती हैं, क्योंकि ये लताएं जब फैलती हुई निवास स्थान की कई जगहों को अपना सहारा बनाकर निवास स्थान पर मकड़ी के झाले की तरह छा जाती हैं, जिससे इन फैली हुई लताओं के शेयर भुजंग, वृश्चिक, मूषक और जो पूरे शरीर को जमीन पर टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए खिसकने वाले सरीसृपों या कीड़े-मकोड़े आदि विष से युक्त जीवात्मा निवास स्थान में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे उनके स्पर्श से खाने-पीने की चीजों की दूषित हो जाती है और उनके द्वारा काटने से मानव शरीर में विष के संचार से मृत्यु तक का डर रहता हैं, इसलिए अपने निवास स्थान की जगह पर बेल को नहीं लगाना चाहिए।





18.बड़े और बहुत विस्तृत वृक्षों को:-बड़े-ऊँचे और बहुत फैलाव वाले वृक्षों को लगाने के विषय में शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं कि इस तरह के वृक्षों को सदैव दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा या दक्षिण-पश्चिम दिशा में से कोई भी दिशा जो आशियाने में फैले हुए जगह के अनुसार लगाना चाहिए। जिससे कि इन वृक्षों के द्वारा मनुष्य निवास स्थान पर मध्याह्न के समय पड़ने वाली सूर्य की तेज अग्नि के समान गर्मी और नुकसानदायक रश्मियों का प्रभाव मानव शरीर पर नहीं पड़ सके। क्योंकि जब पूर्व दिशा में बड़े पेड़ होंगे तो पौ फटने के समय सूर्य की आने वाली किरणें जो जोश एवं बल देने वाली, निश्चत एवं स्थिर स्वरूप और वास्तुदोषों को दूर करने वाली होती है, वे ठीक से नहीं आ पावेगी। जबकि पश्चिम दिशा में बड़े पेड़ होने पर संध्या के समय की नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरे असर से रक्षा करेगी।




19.छोटे वृक्षों या पेड़-पौधों:-छोटे पेड़-पौधों या वृक्षों को हमेशा उत्तर दिशा या पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में लगाने की राह शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं, जिससे निवास स्थान पर सूर्य की किरणें सही तरीके से बिना किसी व्यधान से प्रवेश कर सके और सूर्य की गर्मी के द्वारा संचलन करने की शक्ति मानव को मिल सके और शरीर को आवश्यक सोलह विटामिनों में से विटामिन ए व विटामिन डी आदि की उचित मात्रा मिल सके और मनुष्य के शरीर की पुष्टि बनी रह सकें।  




लेकिन कुछ आचार्यों के अनुसार:-वास्तुशास्त्र के कुछ वास्तुशास्त्रियों के अनुसार गुलाब एवं सफेद आक लगाना नुकसान दायक नहीं होता हैं, बल्कि इनको लगाना फायदेमन्द होता हैं।




शास्त्रानुसार भवन के नजदीक वृक्ष होने का शुभाशुभ निर्णय:-निम्नलिखित रूप से लेना चाहिए।



कौनसे अशुभ पेड़ या वृक्ष नहीं लगाये:-मनुष्य को अपने घर के पास निम्नलिखित वृक्ष या पेड़ जैसे-पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा, पीपल, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, केला, नींबू, अनार, खजूर, बेल आदि को नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा अमंगलकारी और नुकसान होता हैं।


 

वास्तु सौख्यम् 39 के अनुसार:-


मालती मल्लिकां मोचां चिच्चां श्वेतां पराजिताम्।


वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते।।



1.अर्थात्:-जब अपने आवास के गार्डन की जमीन में मालती, मल्लिका, मोचा (कपास), इमली, श्वेता (विष्णुक्रान्ता) और अपराजिता आदि पेड़-पौधों को लगाता हैं, वह मनुष्य किसी हथियार के आघात से मृत्यु को प्राप्त करता हैं। 




बदरी कदली चैव दाड़िमी बीजपूरिका।


प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद्गृहं न प्ररोहति।। (समरांगण सूत्रधार 38/131)


2.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों के जीवन में बढ़ोतरी नहीं होती हैं। आवास की सरहद में कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार के वृक्ष पड़ता है। बेर का वृक्ष ज्यादा दुश्मनी करवाता हैं। 



अश्वत्थं च कदम्बं च कदली बीज पूरकम्।


गृहे यस्य प्ररोहन्ति सगृही न प्ररोहति।। (बृहद्दैवज्ञ.87/9)



3.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब पीपल, कदम्ब, केला, बीजू नींबू आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों की बढ़ोतरी नहीं होती हैं। 




4.जब आवास स्थान की हद में पलाश, कंचन, अर्जुन, करंज और लश्वेमांतक नामक वृक्षों में से कोई भी वृक्ष होता है, उस आवास स्थान में हमेशा बेचैनी बनी रहती है।




5.पीपल का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता हैं, क्योंकि पीपल के वृक्ष पर पितृगणों, साँपों और आत्माओं का निवास होता है। 



6.शमी का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में शमी का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर बुरी शक्तियों का असर होने लगता हैं। 



7.कीकर का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में कीकर के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर नकारात्मक शक्ति अपने असर में ले लेती हैं।



8.इमली का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता और शारीरिक व मानसिक व्याधि से ग्रसित रहते हैं, क्योंकि शमी, कीकर और इमली के वृक्षों में भी बुरी आत्माओं का निवास माना जाता है, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।


9.चंदन का पेड़:-जब आवास स्थान के पास या हद में चंदन का पेड़ उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय भय बना रहता हैं। क्योंकि चंदन के वृक्ष से सर्प आकर्षित होते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



10.नीम का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नीम का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय बिना मतलब के क्लेश बना रहता और आवास को नुकसान हो सकता हैं। क्योंकि नीम की जड़े जमीन में गहराई तक जाती हैं, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



11.नारियल के वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नारियल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों में बिना मतलब एक-दूसरे से श्रेष्ठ होने की और दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बनती हैं। क्योंकि नारियल का वृक्ष की ऊँचाई बहुत ज्यादा होती हैं और हितकारी भी नहीं होते हैं, अतः इन्हें शहरी घर में नहीं लगाना चाहिए।



कौनसे शुभ पेड़ या वृक्ष गार्डन में लगाये:-मनुष्य को अपने आवास में पेड़-वृक्ष जैसे-अशोक, पुन्नाग, मौलसिरी, शमी, चम्पा, अर्जुन, कटहल, केतकी, चमेली, पाटल, नारियल, नागकेशर, अड़हुल, महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि को लगाना हितकारी रहता हैं।



1.अशोक का वृक्ष:-मनुष्य को अपने आवास में अशोक का वृक्ष लगाने पर सभी तरह के आत्मीय दुःख से उपजी वेदना से मुक्ति मिलती हैं और तकदीर का साथ मिलता हैं। यदि आवास स्थान की जमीन का भाग छोटा हैं, तो उसे घर के बाहर भी इसे लगाया जा सकता है।



2.वट या बरगद के वृक्षों:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में दो बड़ के वृक्षों का लगाना चाहिए, उस मनुष्य के सभी तरह के धर्म व नीति के खिलाफ किये बुरे अपराधों की माफी मिल जाती हैं। 



3.पलाश या ढाक के वृक्षों:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पलाश के वृक्षों का लगाता है, उन दम्पत्तियों को कहना मानने वाला, सुंदर, सुशील और सभी तरह से आराम प्रदान करने वाला गुणवान पुत्र की प्राप्ति होती हैं। 




4.पारस का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास में पीपल से थोड़ा भिन्न छोटा पारस के वृक्ष का लगाता है, उन मनुष्य को जमीन-जायदाद की प्राप्ति होती हैं।



5.पीपल का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पीपल के वृक्ष को लगाता है, उन मनुष्य को सभी तरह आराम सहित वैभव की प्राप्ति होती हैं।



6.बिल्ब का वृक्ष:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में बिल्ब का एक वृक्ष लगाते हैं, उस मनुष्य को धन-संपत्ति की प्राप्ति होती हैं, क्योंकि बिल्व वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास्तविक रूप से वास रहता हैं।



7.आँवला का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर आमलक के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को जमीन-जायदाद, दौलत और सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती हैं।



8.श्वेतार्क का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर श्वेतार्क के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को गणेश एवं शिवजी की अनुकृपा से सोना-चाँदी और अन्य बहुमूल्य धातुएँ सहित द्रव्य की प्राप्ति होती हैं। 



9.केले का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर केले के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य पर भगवान सत्यनारायण जी की अनुकृपा सहित लक्ष्मीजी की कृपा भी मिल जाती हैं। 



10.गूलर का पौधा:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर गूलर का पौधा को लगाता है, उस मनुष्य को चन्द्रमा ग्रह से मिलने वाली पीड़ा से मुक्ति मिल जाती हैं। ।



11.निर्गुडी का पौधा:-जिस आवास की हद में निर्गुडी का पौधा का लगा होता हैं, उस आवास में हमेशा वैयक्तिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं।


 

12.दूसरे पौधे:-मनुष्य को आवास की हद से दूर अंगूर, पनस, पाकड़ तथा महुआ के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।

 


13.पुष्पदार पौधों में:-मनुष्य को आवास की हद से दूर या आवास स्थान में चंपा, गुलाब, चमेली, केतकी पुष्पदार के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।



14.नीम का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर अर्थात् सड़क के किनारे या जहां पर वह पनप सके उस स्थान पर नीम का वृक्ष को लगाता है, उस मनुष्य को मंगल ग्रह से मिलने वाले कष्टों से मुक्ति, बढ़े हुए कर्ज और खून की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती हैं। लेकिन कुछ आचार्यों ने कुछ दूसरे पेड़ जैसे-नीम, चंदन एवं नारियल को लगाना भी हितकारी बताया है।



15.तुलसी का पौधा:-मनुष्य को अपने निवास की जगह के ईशान या ब्रह्म स्थान तुलसी का पौधा लगाना चाहिए, जिससे मनुष्य को सुबह दर्शन करने से सोने के दान की तरह फल मिल जावें, रुपये-पैसों, पुत्र सन्तान की प्राप्ति, सभी तरह परोपकार के कार्यों का फल, ईश्वर भक्ति में रुचि और कल्याण की प्राप्ति हो सकें। लेकिन तुलसी के पौधे को दक्षिण दिशा में में नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा मरने के समय यम दूतों के द्वारा दी जाने वाले कष्टों को झेलना पड़ता हैं।

 


विशेष:-जब परिस्थिति वश किसी वृक्ष को काटना पड़े, तो उस स्थिति में दूसरे दश वृक्षों को कहीं पर लगाना चाहिए और उनकी देखभाल सभी तरह जैसे-पानी, खाद, जानवरों आदि से करनी चाहिए। इस तरह से वृक्षों की सेवा करने से जो वृक्षों को काटने से हुए बुरे कर्मों के दोष से मुक्त हो जाता हैं। मनुष्य को बिना वजह वृक्षों को काटना और उनकी डालों, पल्लवों को तोड़ना अनुचित एवं निंदनीय कर्म माना गया है, क्योंकि वृक्षों में भी जीवनी शक्ति होती हैं, क्योंकि यह बात को वैज्ञानिकों ने भी वास्तविक रूप से बिना विवाद के सिद्ध कर चुके हैं कि सुख-दुख और गर्मी, सर्दी व बरसात जैसी सभी चारों तरफ के हालातों से वृक्षों पर असर होता हैं और वे भी सही तरह से अहसास करते हैं। इसी कारण से वृक्षों को काटने और उनको नुकसान पहुँचाने के बारे में भर्त्सना की गई हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में वृक्षों को नष्ट करने की निंदा की गई हैं।



ऋग्वेद के अनुसार:-वृक्षों को दुःख, काटने आदि करने के बारे में निम्नलिखित रूप से ऋग्वेद में कहा गया है-


मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिम् शस्तीर्वि हि नीनशः।


मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा अदद्यते वेः।।


अर्थात्:-जिस तरह अपनी ताकत के बल द्वारा कुटिल मनोवृत्ति वाला बाज पक्षी दूसरे कमजोर पक्षियों की गर्दन को मरोड़कर उन्हें तकलीफ सहित पीड़ा देता हैं, तुम भी उसी तरह मत बनो। इन वृक्षों को पीड़ा मत दो, उनको जड़ से उखाड़-पछाड़ मत करो। ये सभी संसार के पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं।
















 







 




 





















 


















Saturday, 1 July 2023

July 01, 2023

परीक्षा के डर में ग्रहों की भूमिका और ज्योतिष निवारण(Pariksha ke dar me graho ki bhoomika aur jyotish nivaran)

परीक्षा के डर में ग्रहों की भूमिका और ज्योतिष निवारण(Pariksha ke dar me graho ki bhoomika aur jyotish nivaran):-समस्त जगत में जन्म लेने वाले लड़के या लड़कियों और समस्त मनुष्यों का भविष्य अपनी माता की कोख में आने के साथ ही पहले से तय होता हैं, उस समय की कुंडली को स्थापन कुंडली कहलाती हैं।

जब किसी भी मनुष्य का जन्म होता हैं, तो उस समय में जो ग्रह व नक्षत्र अपनी गति से चल रहे होते हैं, वे उस मनुष्य के भविष्य को निर्धारण करने के लिए उसके जन्म समय में बैठ जाते हैं, उस समय की कुंडली को जन्मकुंडली कहा जाता है। इस जन्मकुंडली से ही सभी मनुष्य की धारणा शक्ति का तय हो जाता हैं। इसी तरह ही माता-पिता तथा बहुत कुलों या वंशो की परम्परा के गुणसूत्र भी मनुष्य के भविष्य के साथ मिल जाते हैं। मनुष्य के रक्त व उसकी कार्यिकी आकृति में वजूद भी देखने को मिलता हैं।



Pariksha ke dar me graho ki bhoomika aur jyotish nivaran




बालक या बालिका का पूर्वजन्म में जिस घर में जन्म लेकर उस जन्म में किये गए धार्मिक कर्मो के द्वारा अच्छे गुणों व बुरे गुणों का प्रभाव भी नवीन जन्म के वंश पर ग्रह-नक्षत्रों के असर से धारणा शक्ति, आयु और कर्म आदि का भी तय होता हैं। विद्यार्थियों को अपने विद्यालय एवं उच्च शिक्षण संस्थान में परीक्षा देने के समय उपरोक्त बातों की जानकारी भी कराना चाहिए। बालक-बालिकाओं के पढ़ाई के लिए उचित वातावरण के साथ अध्ययन कमरा अध्ययन की दृष्टि से ठीक होना चाहिए जिससे उनको किसी भी तरह की पढ़ाई में बाधा नहीं होवें। उनके अध्ययन कक्ष में वास्तुदोष भी नहीं होना चाहिये, अन्यथा उनके मस्तिष्क पर वास्तुदोष के कारण असर होगा। जो भी विद्यार्थी परीक्षा देने से पूर्व अपने पाठ्यक्रम पूर्ण करते हुए, पाठ्यक्रम के विषयों को पूरी तरह अपने मस्तिष्क के क्षेत्र में याद रखना चाहते है, जिससे उनका विषय के अनुसार पेपर अच्छा हो जावे और उस विद्यार्थी को अच्छे अंक मिल जावे। इस तरह से पूरी तैयारी करने के बाद भी विद्यार्थियों के मन के कोने में डर बैठा होता हैं, की विषय से सम्बंधित पेपर कैसे होगा, फिर वे उन विचारों में डूबे रहते हैं, जिससे उनके मन में आत्मविश्वास कम होने लगता हैं। इन तरह से परीक्षा के डर को विद्यार्थियों के मन से निकालने में ज्योतिष शास्त्र में कुछ वर्णित सूत्र बताए गए हैं, उनको जानकर विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ सकता हैं। परीक्षा के बारे में विद्यार्थियों के मन में डर रहता हैं, प्रश्नपत्र कैसा आयेगा व कितने प्रश्न वह कर पाएंगे। इन सबमें ज्योतिष शास्त्र के ग्रहों का बहुत ही योगदान रहता हैं, जिससे विद्यार्थियों के मन में उत्साह का संचार किया जा सकता हैं, जो विद्यार्थियों पाठन से कमजोर होते हैं, उनकी जन्मकुंडली का विश्लेषण करके जन्मकुंडली में विद्या के कारकेश एवं आत्मविश्वास के कारकेश को बल प्रदान करके उन विद्यार्थियों के मन में उत्साह एवं आत्मविश्वास को बढ़ाने में ज्योतिष शास्त्र के योगों का योगदान हो सकता हैं।




परीक्षा में डर के ज्योतिषीय कारण:-परीक्षा में डर के कारण ज्योतिष के अनुसार ग्रहों को बताया गया हैं, जो कि इस तरह है:



◆जन्मकुंडली में चौथा घर सोचने-समझने एवं निश्चय करने की मानसिक या विवेक शक्ति और पांचवां घर विषय का क्रमबद्ध ज्ञान या शिक्षा को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने का या समाहित करने का होता हैं।



◆जब चोथे घर और पांचवे घर बुरे ग्रहों की युति हों, बुरे ग्रहों के इन घरों में बैठने से और इन घरों में बुरे ग्रहों की दृष्टि होने पर इन घरों को मजबूती के लिए इनके उपाय करने चाहिए।




रवि ग्रह:-रवि ग्रह जो कि ग्रहों का राजा होता हैं, जो कि आत्मा, पिता और खुद पर यकीन का कारकेश होता है, यदि जन्मकुण्डली में रवि ग्रह पर जब बुरे ग्रहों के द्वारा देखा जाता है या बुरे ग्रहों के साथ एक ही घर में बैठ जाते हैं, तब उन बुरे ग्रहों के प्रभाव के कारण विद्यार्थी के मन में खुद पर यकीन नहीं कर पाते है, इसलिए इन विद्यार्थियों की जन्मकुण्डली का विश्लेषण करके रवि ग्रह को ज्योतिषी उपायों द्वारा मजबूती प्रदान कर सकते हैं, जिससे विद्यार्थी के मन में खुद पर यकीन की जागृति होने से वह परीक्षा में अच्छा पेपर कर सके एवं अच्छे अंको को हासिल कर पावे।



◆जब जन्मकुंडली में रवि ग्रह पर मन्द ग्रह या सेंहिकीय या शिखी ग्रह के बुरे प्रभाव में होने पर भी विद्यार्थी अपने आप पर विश्वास कम हो जाता हैं।



◆जब जन्मकुंडली में रवि ग्रह अपनी नीच राशि तुला राशि या अपने शत्रु राशि के घर में बैठते है, तब भी खुद पर यकीन में कमी करते हैं।



भौम ग्रह:-ग्रहों में भौम ग्रह को रक्षा करने वाला बताया गया है, भौम ग्रह शरीर में ऊर्जा का संचार, जोश, सामर्थ्य, शौर्य और मन की दृढ़ता से किसी काम को करने में प्रवृत्त करने का कारकेश माना जाता है।


◆जब जन्मकुंडली में भोम ग्रह पर मन्द ग्रह या सेंहिकीय या शिखी ग्रह के बुरे प्रभाव में होने पर भी विद्यार्थी में शरीर की ऊर्जा संचार में कमी आने लगती है, जिससे विद्यार्थी के मन में नकारात्मक विचारों से मन भटकने लगता है और उसके कार्य सामर्थ्य में कमी आने लगती हैं।



◆जब जन्मकुंडली में भौम ग्रह अपनी नीच राशि कर्क राशि या अपने शत्रु राशि के घर में बैठते है, तब विद्यार्थी के मन में अनेक तरह के भावों की जागृति होने से मन भटकने लगता हैं।




छात्रवृतिधारी को परीक्षा के डर को उत्पन्न करने में सहायक चन्द्रमा ग्रह:-जब बालके या बालिकाओं के मन का स्वामी चन्द्रमा उनकी जन्मकुंडली में बुरे ग्रहों के साथ बैठा होता हैं, उस पर बुरे ग्रहों की युति होती हैं और बुरे ग्रहों के द्वारा देखा जाता हैं, तब चन्द्रमा निर्बल हो जाता हैं, इस तरह से चन्द्रमा के निर्बल होने से बुरे ग्रहों का असर उस बालक या बालिका की जन्मकुंडली में निर्बल चन्द्रमा पर होने लगता हैं, जिससे बालक या बालिका में अस्थिरता के भाव उत्पन्न होने लगते हैं और उनको डर लगता हैं कि परीक्षा में पास होंगे या नहीं। 



सौम्य ग्रह एवं जीव ग्रह:-सौम्य ग्रह को राजकुमार एवं जीव ग्रह को गुरु का पद ग्रहों में मिला हुआ है, इस तरह सौम्य ग्रह बुद्धि, सोचने समझने की शक्ति एवं जीव ग्रह को समग्र ज्ञान के क्षेत्र का, उच्च शिक्षा आदि का कारकेश बताया गया हैं।



◆जब जन्मकुंडली के पांचवे घर एवं पांचवे घर के मालिक यदि बुरे ग्रहों के प्रभाव में होते है, तब विद्यार्थियों के मन में परीक्षा का डर बढ़ जाता हैं।



◆जन्मकुंडली के नवें घर एवं नवे घर पर भी पाप ग्रहों का असर होने पर भी विद्यार्थियों के उच्च शिक्षा को पाने में बाधा आती हैं।



विद्यार्थियों की रुचि किस विषय में है, इसकी जानकारी किसी जानकार ज्योतिषी को जन्मकुंडली दिखाकर उसका विश्लेषण करवाने पर पता चल जाता हैं।



छात्रवृतिधारीयों को दैनिक जीवन में ध्यान रखने योग्य बातें:-छात्रवृतिधारीयों को अपनी विद्या में प्रगति पाने और अपनी परीक्षा के कारण उत्पन्न डर को मिटाने के लिए निम्नलिखित बातों का पालन करना चाहिए एवं उन दोषों से बचना चाहिए, जो इस तरह हैं-



1.छात्रवृतिधारी के शयन कक्ष में सोने के समय की दिशा:-छात्रवृतिधारी को अपने अध्ययन में रुचि बढ़ाने के लिए शयन कक्ष में सोते समय अपने सिर को निम्नलिखित प्रकार से रखना चाहिए-


नोत्तराभिमुखः सुप्यात् पश्चिमाभिमुखो न च।। (लघुव्यासस्मृति २/८८)


उत्तरे पश्चिमे चैव न स्वपेद्धि कदाचन।।


स्वप्नादायुःक्षयं याति ब्रह्महा पुरुषो भवेत्।


न कुर्वीत ततः स्वप्नं शस्तं च पूर्वदक्षिणम्।। (पद्म पुराण, सृष्टि. ५१/१२५-१२६)


प्राच्यां दिशि शिरश्शस्तं याम्यायामथ वा नृप।


सदैव स्वपतः पुंसो विपरीतं तु रोगदम्।। (विष्णुपुराण ३/११/१११)


प्राक् शिरः शयने विद्याद्धनमायुश्च दक्षिणे।


पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे।। (आचार्यमयूख; विश्वकर्मप्रकाश)



अर्थात्:-जो विद्यार्थी उच्च विद्या को पाना चाहते हैं, उनको पूर्व दिशा की तरफ अपना सिर रखकर सोना चाहिए।


◆जो विद्यार्थी अपने जीवन में बहुत सारे रुपयों-पैसों की और अपने जीवन की गति को ज्यादा वर्षों तक भोगने की इच्छा रखते हैं उनको दक्षिण दिशा की तरफ सिर रखना चाहिए।


◆जिनको बिना मतलब की परेशानियों को भोगना होता है, वे अपना सिर पश्चिम दिशा की ओर रखकर सोते हैं।


◆जो विद्यार्थी अपना सिर उत्तर दिशा की तरफ रखकर सोते हैं उनको अपने जीवन में विद्या से संबंधित नुकसान एवं अपनी उम्र की भी हानि करते हैं और शरीर में बीमारी को उत्पन्न करते हैं।


◆छात्रवृतिधारी को हमेशा अपना सिर पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर करके सोना चाहिए।


◆विद्यार्थी का अन्न-भण्डार, गौशाला, गुरु-स्थान और मन्दिर के ऊपर शयनकक्ष नहीं होना चाहिए।



2.प्रातःकाल उठने का समय:-जो विद्यार्थी अपने जीवन में उच्च शिक्षा को पाने की चाहत रखते हैं, उनको प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त अर्थात् चार से पांच बजे के समय में उठना चाहिए। यह समय एकदम शांत होता हैं, जिससे जो भी पढ़ा जाये वह शीघ्र याद हो जाता हैं।



3.शौच करने की दिशा:-का ध्यान रखना चाहिए।


उदङ्मुखो दिवा मूत्रं विपरीतमुखो निशि। (विष्णुपुराण ३/११/१३)


दिवा सन्ध्यासु कर्णस्थब्रह्मसूत्र उदङ्मुखः।


कुर्यान्मूत्रपुरीषे तु रात्रौ च दक्षिणामुखः।। (याज्ञवल्क्य. १/१६, वाधूल.८)



अर्थात्:-छात्रवृतिधारी को दिन में उत्तर की और रात्रिकाल में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए। इस तरह से मल-मूत्र करने से उम्र की कमी नहीं होती हैं।



उभे मूत्रपुरीषे तु दिवा कुर्यादुदङ्मुखः।


रात्रौ कुर्याद्दक्षिणास्य एवं ह्यायुर्न हीयते।। (वसिष्ठस्मृति ६/१०)


अर्थात्:-विद्यार्थियों को कभी भी सुबह पूर्व दिशा की ओर तथा रात्रि पश्चिम दिशा की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए, यदि ऐसा करने से सिरदर्द या आधासीसी (माइग्रेन) रोग होता हैं।



4.दांतों को साफ करने के लिए मंजन या दातुन की दिशा:-का ध्यान रखना चाहिए।।


प्राङ्मुखस्य धृतिः सौख्यं शरीरारोग्यमेव च।


दक्षिणेन तथा कष्टं पश्चिमेन पराजयः।।


उत्तरेण गवां नाशः स्त्रीणां परिजनस्य च।


पूर्वोत्तरे तु दिग्भागे सर्वान्कामानवाप्नुयात्।। (आचार्यमयूख)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी अपना मुख पूर्व दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनमें सहनशीलता, सभी तरह के आराम और शरीर तंदुरुस्त रहता हैं। 


पश्चिमे दक्षिणे चैव न कुर्याद्दन्तधावनम्। (पद्मपुराण सृष्टि.५१/१२५)


◆जो विद्यार्थी अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनको सभी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।


◆जो विद्यार्थी अपना मुख पश्चिम दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनको सभी तरह से निराशा हाथ आती हैं।


◆जो विद्यार्थी अपना मुख उत्तर दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनको सभी तरह के अशुभ व अनिष्ट प्राप्त होता हैं।

 

◆जो विद्यार्थी अपना मुख पूर्व-उत्तर दिशा या ईशान कोण की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनकी सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



◆विद्यार्थी को हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही दन्तधावन (दातुन) करना चाहिए-



◆छात्रवृतिधारी को अपनी परीक्षा में कामयाबी को पाने के लिए दूसरे ग्रन्थ के अनुसार हमेशा पूर्व दिशा या ईशान कोण की तरफ अपना मुख करके ही अपने दाँत का दातुन से मंजन करके साफ करना चाहिए।


◆सुबह और खाना खाने के बाद दन्तधावन करना चाहिए और मधुर रस वाली दतवन का उपयोग नहीं करना चाहिए।


आयुर्बलं यशो वर्च प्रजापशुवसूनि च।


ब्रह्म प्रज्ञा च मेधां च त्वां नो देहि वनस्पते।


अर्थात्:-जो विद्यार्थी इस तरह से दांतो को दातुन से मंजन करते हैं, उन लड़कों या लड़कियों के शरीर में किसी भी तरह की व्याधि से पीड़ित नहीं हो पावेंगे और उनमें सहनशीलता के गुण विकसित होंगे और मन की इच्छा के अनुरूप ही अंक प्राप्त होंगे, उम्र की बढ़ोतरी, यश, ताकत, ऐश्वर्य, रुपये-पैसे की प्राप्ति, बुद्धि, मेघा आदि की बढ़ोतरी होती हैं।



5.क्षौरकर्म (बाल कटवाना) करते समय:-विद्यार्थियों को अपने बाल कटवाते समय अपना मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ सोमवार, बुधवार, शुक्रवार के दिन ही कटवाने चाहिए।



6.देवपूजन करते समय:-देवी-देवता का पूजन करते समय छात्रवृतिधारी को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके ही करना चाहिए।



7.खाना खाते समय दिशा:-लड़के या लड़कियों को खाना खाते समय निम्नलिखित दिशाओं को ध्यान में रखना चाहिए। 


मुखस्य धृतिः सौख्यं शरीरारोग्य मेवचं।


पूर्वात्तरें तु दिग्भागें सर्वान्कामान् वाप्नुयात्।।


अर्थात्:-लड़के या लड़कियां को खाना खाते समय अपना मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए, जिससे उनको सूर्यदेव के द्वारा उत्साह व पराक्रम मिल सके और बुधदेव से बुद्धि व सोचने-समझने की शक्ति मिल सकें। इसलिए भोजन हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।


प्राङ्मुखोदङ्मुखो वापि' (विष्णुपुराण ३/११/७८)


प्राङ्मुखSन्नानि भुञ्जीत' (वसिष्ठस्मृति १३/१५)


अर्थात्:-विद्यार्थियों को दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की ओर मुख करके भोजन नहीं करना चाहिए।


भुञ्जीत नैवेह च दक्षिणामुखो न च प्रतिच्यामभिभोजनीयम्।। (वामनपुराण १४/५१)


अर्थात्:-विद्यार्थी जब दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करते हैं, तब उस भोजन पर असुरी असर होने लगता हैं और गलत विचारों की उत्पत्ति होने लगती हैं। 


'तद् वै रक्षांसि भुञ्जते' (पाराशरस्मृति १/५९)


अप्रक्षालितपादस्तु यो भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।


यो वेष्टितशिरा भुङ्क्ते प्रेता भुञ्जन्ति नित्यशः।। (स्कन्दपुराण प्रभास. २१६/४१)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके अपने पैरों को साफ जल से बिना धोये हुए और सिर पर किसी कपड़े को लपेटकर खाना खाते हैं, उनका खाना हमेशा प्रेत अर्थात् नकारात्मक शक्तियां खाती हैं।


यद् वेष्टितशिरा भुङ्क्ते यद् भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।


सोपानत्कश्च यद् भुङ्क्ते सर्वं विद्यात् तदासुरम्।। (महाभारत, अनु.९०/१९)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके अपने पैरों पर जूते पहने हुए और सिर पर किसी कपड़े को लपेटकर खाना खाते हैं, उनका खाना हमेशा प्रेत अर्थात् नकारात्मक शक्तियां खाती हैं।



प्राच्यं नरो लभेदायुर्याम्यां प्रेतत्वमश्रुते।


वारूणे च भवेद्रोगी आयुर्वितं तथोत्तरे।। (पद्मपुराण, सृष्टि.५१/१२८)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी अपना मुख पूर्व दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उनकी उम्र की बढ़ोतरी होती हैं। 



◆जो विद्यार्थी अपना मुख उत्तर दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उनकी उम्र की बढ़ोतरी और रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं। 

 

◆जो विद्यार्थी अपना मुख पश्चिम दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उनका शरीर बीमारियों का शिकार हो जाता हैं। 



◆जो विद्यार्थी अपना मुख दक्षिण दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उन पर नकारात्मक शक्तियों का असर होने लगता हैं। 

 


4.परीक्षा के दिन वार से उत्पन्न विकार का समाधान:-लड़के या लड़कियों को परीक्षा के दिन वार के कारण उत्पन्न विकार को दूर करने के लिए निम्नाकिंत समाधान करने चाहिए-


१.रविवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-रविवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो पंचामृत का सेवन करके ही जाना चाहिए।


२.सोमवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-सोमवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो दर्पण में अपना मुहं को देखकर और खीर को खाकर जाना चाहिए। 

 

३.मंगलवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-मंगलवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो धनिया या कांजी या गुड़ का सेवन और मिट्टी को छूकर जाना चाहिए।

 

४.बुधवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-बुधवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो मीठी वस्तुओं व गर्म दूध का व तिल का सेवन करके और फूल का स्पर्श करके ही जाना चाहिए।


५.गुरुवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-गुरुवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो राई व दही का सेवन करके ही जाना चाहिए।


६.शुक्रवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-शुक्रवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो कच्चा दूध, घी व जौ का सेवन करके ही जाना चाहिए।


७.शनिवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-शनिवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो उड़द व तिल का सेवन करके ही जाना चाहिए।



इस तरह से लड़के या लड़कियों को परीक्षा के दिन उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करके या उन वस्तुओं का नाम लेकर या उन वस्तुओं को छूकर ही जाना चाहिए।



5.विद्यार्थी के द्वारा परीक्षा में जाने से पूर्व करने योग्य काम:-विद्यार्थी को परीक्षा में जाने से पूर्व निम्नलिखित कार्यों को करके ही जाना चाहिए-


१.हाथों के दर्शन करना:-सुबह उठते ही अपने दोनों हाथों को इकट्ठा करते हुए अर्धचंद्र की आकृति बनाकर उस आकृति का दर्शन करना चाहिए।


२.अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना करना:-परीक्षा के दिन अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, उनकी पूजा में जो चढ़ाए गए फूलों में से एक फूल को अपने साथ रखना चाहिए।


३.चरण स्पर्श करना एवं आशीर्वाद प्राप्त करना:-परीक्षा में जाने से पूर्व विद्यार्थी को अपने परिवार के सभी वृद्धजनों, माता-पिता, गुरु के चरण को स्पर्श करके ही जाना चाहिए, जिससे उनका आशीर्वाद मिल जावें और उनके आशीष से जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती हैं, उससे विद्यार्थी की याददाश्त शक्ति बढ़ती हैं।


४.गाय को चारा व कुत्ते को रोटी खिलाना:-परीक्षा के दिन गाय को हरा चारा एवं काले या किसी भी रंग के कुत्ते को रोटी या बिस्कुट खिलाते हुए जाना चाहिए।


इस तरह से उपरोक्त क्रियाओं को करने से मन के अंदर अपनी परीक्षा के डर से मुक्ति मिलती हैं और हिम्मत आती हैं। जिससे अपने ऊपर विश्वास बढ़ता हैं और जो परीक्षा के प्रति डर होता हैं वह दूर होकर मन एक जगह पर स्थिर हो जाता हैं।



6.सात वारों के अनुसार वस्त्रों को पहनना:-विद्यार्थी को सप्ताह के सातों दिनों के अनुसार कपड़ों को पहनना चाहिए, जिससे उनके शरीर पर अलग-अलग रंग के कपडो को पहनने से नौ ग्रहों के स्वरूप से उनको जोश व उत्साह मिल सकें और मन में सकारात्मक भावों का जन्म हो सकें। इसलिए सप्ताह के अनुसार निम्नलिखित रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए- 


१.रविवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को रविवार के दिन उनके गुलाबी कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



२.सोमवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को सोमवार के दिन उनके श्वेत कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



३.मंगलवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को मंगलवार के दिन उनके रक्त कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



४.बुधवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को बुधवार के दिन उनके हरित कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



५.गुरूवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को गुरुवार के दिन उनके पीत कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



६.शुक्रवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को शुक्रवार के दिन उनके आसमानी एवं चमकदार श्वेत कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



७.शनिवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को शनिवार के दिन उनके कृष्ण कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



7.अध्ययन में मुहूर्त का असर:-कोई भी मंगलकारी या अच्छा कार्य करते समय मुहूर्त का विचार किया जाता हैं, उसी तरह विद्यार्थी के लिए परीक्षा उसके जीवन का निचोड़ होती हैं, इसलिए परीक्षा में जाने से पूर्व मुहूर्त का विचार जैसे-



१.स्वर विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी को स्वर विचार जैसे-इंडा, पिंगला, सुषुम्ना स्वर का ध्यान रखना चाहिए। 


शरीर की रीढ़ की हड्डी में ऊपर मस्तिष्क से लगाकर मूलाधार चक्र या गुदद्वार तक सुषुम्ना नाड़ी रहती हैं, इस नाड़ी के बायीं ओर चन्द्र स्वर नाड़ी और दायीं ओर सूर्य स्वर नाड़ी रहती हैं।

सुषुम्ना नाड़ी स्वर या उभय स्वर:-जब दोनों नासिका छिद्रों से वायु-प्रवाह एक साथ निकलना प्रारम्भ होता हैं। सुषुम्ना स्वर में ध्यान, धारणा, समाधि, प्रभु -स्मरण और कीर्तन श्रेयस्कर हैं। 

नासिका के बायें छिद्र को बायाँ स्वर या चन्द्र स्वर या इंडा नाड़ी स्वर:-सभी तरह के स्थिर, अच्छे कार्य करने पर सफलता मिलती हैं।



नासिका के दाहिने छिद्र को दाहिनी स्वर या पिंगला नाड़ी स्वर या सूर्य स्वर:-सभी प्रकार के चलित, कठिन कार्य करने से सफलता मिलती हैं। इस स्वर में भोजन करना,  विद्या और संगीत का अभ्यास आदि कार्य सफल होते हैं।


उपर्युक्त स्वरों में से कौनसा स्वर परीक्षा के दिन चल रहा हैं, उसकी जानकारी के आधार पर फल समझना चाहिए।


२.राहुकाल का विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी को राहुकाल के समय को हो सके तो टालना चाहिए। 



३.चन्द्रमा का विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी के नाम या राशि से चन्द्रमा चौथा, छठा, आठवां या बारहवां नहीं होना चाहिए।


४.शकुन-अशकुन का विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी को निम्नलिखित शकुन-अशकुन का विचार करके जाना चाहिए।



शुभ शकुन विचार:-परीक्षा के दिन स्याही गिरना, दही सामने आ जाना, पूजा की डाली लिए किसी का सामने आना, भरी बाल्टी का सामने आना, फल या मिठाई सामने आना, कुँवारा लड़की या बच्चा या धोबी का सामने आना, शंख बजना, घंटा या घड़ियाल बजना या पूजा के श्लोक सुनाई देना, मुर्दा श्मशान जाते हुए सामने आना, फूलों का गुलदस्ता सामने आना, फुहार पड़ना, बादल गरजना आदि शुभ शकुन होते हैं।



अशुभ शकुन विचार:-परीक्षा के दिन बिल्ली या सियार या लोमड़ी का रास्ता काटना, किसी का छींक देना, तेली या संन्यासी या विधवा का सामने आना, ओले पड़ना या बिजली चमकना, खाली बाल्टी सामने आना, बच्चे का रोना, कौवे या उल्लू या काकर का बोलना, स्याही सूखना (कलम की), हिचकी आना, कुत्ते का रोना, मांस सामने आना, बताशे आना, दूध पीना आदि अशुभ शकुन होते हैं।



उपर्युक्त मुहूर्त का विचार करके ही परीक्षा में जाना चाहिए।


ब्रह्ममुहूर्त का समय विद्यार्थी के लिए उत्तम समय विद्या प्राप्ति के लिए:-प्रातःकाल चार बजकर चौबीस मिनिट से शुरू होकर पांच बजकर चौबीस मिनिट के समय को ब्रह्ममुहूर्त कहा जाता है, इसलिए विद्यार्थी को इस समय में उठकर अपनी पढ़ाई को करना चाहिए, क्योंकि यह समय बहुत ही शांत एवं मन को एक जगह पर स्थिर रखने वाला होता हैं, इस समय जो कोई भी पढ़ा हुआ बहुत समय तक मस्तिष्क में रहता हैं। इस समय में पढ़ाई करने से वाणी में तेजता आती हैं और बुद्धि तेज होती हैं, क्योंकि बुद्धि के स्वामी गणपति जी को माना जाता हैं। 



मौखिक परीक्षा से पूर्व करने योग्य उपाय:-बुध ग्रह को वाणी का स्वामी व कारक होता हैं। मौखिक परीक्षा में जाने से पहले गणपति को याद करते हुए उनका ध्यान करना चाहिए, जिससे बुद्धि बढ़े और याददाश्त शक्ति भी बढ़े।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय शुभ वस्तु जैसे-दूब घास, दही, घी, जल से भरे घड़े, बछड़े सहित गाय को छूकर निकलने पर परीक्षा का पर्चा अच्छा होता हैं।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय बैल, सवर्ण, पीत मिट्टी, स्वस्तिक चिह्न और अक्षत-चावल को छूकर निकलने पर आशा से बढ़कर परीक्षा का पर्चा होता हैं।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय रास्ते में पीपल के पेड़ को छूकर निकलना चाहिए।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय रास्ते में या आवास में तुलसी को नीचे झुकर प्रणाम करके एक पल्लव को लेकर आगे बढ़ना चाहिए, जिससे परीक्षा का पर्चा अच्छा होता हैं और परीक्षा का परिणाम अपने सोचे अनुसार ही मिलता हैं। 



◆परीक्षा के दिन दधि, मावा या पेड़ा आदि को खाने पर परीक्षा का पेपर अच्छा होता हैं।



सूर्य ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं को खुद पर ज्यादा यकीन नहीं होता हैं, उनको सूर्यदेव की पूजा, सूर्य अर्घ्यं देना, ताम्र धातु के बर्तन में रात्रिकाल में पानी भरकर सुबह उस जल को पीना चाहिए। 



चन्द्रमा ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिनका चन्द्रमा कमजोर होता हैं, उन बालक या बालिकाओं को निम्नलिखित उपाय करके अपने चन्द्रमा को मजबूती प्रदान करनी चाहिए-



◆विद्यार्थियों को परीक्षा के दिन भगवान शिवजी के मंदिर परिसर में जाकर शिवजी के दर्शन करना चाहिए, फिर परीक्षा स्थल की जाना चाहिए।



◆यदि परीक्षा के दिन भगवान शिवजी की पूजा विद्यार्थी कर सकते हैं, तो उनको शिवजी की जल अभिषेक, दुग्ध अभिषेक, बिल्व पल्लवों से पूजा-अर्चना करनी चाहिए, उसके बाद ही परीक्षा के लिए जाना चाहिए।



◆चन्द्रमा ग्रह को बल देने के लिए बालक या बालिकाओं को किसी योग्य पण्डित से मोती ग्रह को अभिमंत्रित करवाकर रजत धातु में बनवाकर पहन लेना चाहिए, जिससे मन में बुरे विकार नहीं आ पाते हैं और मन एक जगह पर केद्रित रहता है।



मंगल ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं में पढ़ने के प्रति उत्साह नहीं हो, उनको गुड़ का सेवन करते हुए भगवान श्रीराम और पवनपुत्र हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए। 



बुध ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं की स्मरण शक्ति कमजोर हो, वे भगवान गणपति जी की पूजा, हरित वर्ण साग-सब्जियों जैसे-पालक, हरित टमाटर आदि का सेवन करना चाहिए।



गुरु ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं पढ़ने-समझने में दिक्कत होती हैं, उनको दुग्ध में हरिद्रा पाउडर, बादाम आदि मिलाकर पीना चाहिए और भगवान चक्रपाणि जी की पूजा करनी चाहिए।  




विद्या के कारक ग्रह:-विद्यार्थी को अपने जीवन में अपनी रुचि के अनुसार ही विद्या के मार्ग को अपनाना चाहिए, विभिन्न विद्या के क्षेत्र जिनको जानकार विद्यार्थी अपना पथ की राह को पकड़ सकते हैं-



१.सूर्य ग्रह शिक्षा के स्वामी:-सूर्य ग्रह को प्रशानिक शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि प्रशानिक शिक्षा प्राप्त करनी होती हैं, उनको सूर्य ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



२.चन्द्रमा ग्रह शिक्षा के स्वामी:-चन्द्रमा ग्रह को रसायन व वनस्पति शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि रसायन व वनस्पति शिक्षा में होती हैं, उनको चन्द्रमा ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



३.मंगल ग्रह शिक्षा के स्वामी:-मंगल ग्रह को पुलिस विभाग, सेना की शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि पुलिस विभाग, सेना में जाने की होती हैं, उनको मंगल ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



४.गुरु ग्रह शिक्षा के स्वामी:-गुरु ग्रह को उच्च शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि उच्च शिक्षा में होती हैं, उनको गुरु ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



५.शुक्र ग्रह शिक्षा के स्वामी:-शुक्र ग्रह को नृत्य-संगीतकला, कॉमर्स और व्यावसायिक शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि नृत्य-संगीतकला, कॉमर्स और व्यावसायिक शिक्षा करनी होती हैं, उनको शुक्र ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।


६.शनि व मंगल ग्रह शिक्षा के स्वामी:-शनि व मंगल ग्रह को मेडिकल शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि मेडिकल शिक्षा में होती हैं, उनको शनि व मंगल ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



७.शनि व बुध ग्रह शिक्षा के स्वामी:-शनि व बुध ग्रह को तकनीकी व कम्प्यूटर शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि तकनीकी व कम्प्यूटर शिक्षा में होती हैं, उनको शनि व बुध ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



८.राहु ग्रह शिक्षा के स्वामी:-राहु ग्रह को इंजीनियरिंग शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि इंजीनियरिंग करनी होती हैं, उनको राहु ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



विशेष:-विद्यार्थी को परीक्षा में जाते समय वार अर्थात् दिन का ध्यान रखना चाहिए, यदि दिन या वार परीक्षा के दिन ठीक नहीं हो, तो उस वार या दिन के दोष का निराकरण करके ही जाना चाहिए।